Tuesday 16 February 2016

धरती हमारी गोल गोल [पूर्व प्रकाशित रचना ]

स्कूल से आते ही राजू ने अपना बस्ता खोला और लाइब्रेरी से ली हुई पुस्तक निकाल कर अपनी छोटी बहन पिंकी को बुलाया ,तभी माँ ने राजू को आवाज़ दी ,बेटा पहले कपड़े बदल कर ,हाथ मुह धो कर ना खा लो ,फिर कुछ और करना ,तभी पिंकी ने अपने भाई के हाथ में वह पुस्तक देख ली |ख़ुशी के मारे वह उछल पड़ी ,”आहा ,आज तो मजा आ जायेगा ,भैया मुझे इसकी कहानी सुनाओ गे न ”| ”हाँ पिंकी ,यह बड़ी ही मजेदार कहानी है ” ,पुस्तक वही रख कर राजू बाथरूम में चला गया |

हाथ मुह धो कर ,दोनों ने जल्दी जल्दी खाना खाया और अपने कमरे में बिस्तर पर बैठ कर पुस्तक उठाई |अपनी तीन वर्षीय ,छोटी बहन का हीरो भाई राजू उस किताब को लेकर बहुत ही उत्साहित था ”पिंकी यह कहानी हमारी धरती की है ” ,उसने जोर जोर से पढना शुरू किया ,”बात पन्द्रहवी सदी के अंत की है ,जब भारत को खोजते खोजते क्रिस्टोफर कोलम्बस अपने साथियों सहित सुमुद्री मार्ग से अमरीका महाद्वीप में ही भटक कर रह गया था |उस समय सुमुद्रीय यात्राएं बहुत सी मुसीबतों से भरी हुआ करती थी ,ऐसी ही एक ऐतिहासिक यात्रा ,सोहलवीं सदी के आरम्भ में स्पेन की सेविले नामक बंदरगाह से एक व्यापारिक जहाजी बेड़े ने प्रारंभ की |इस बेड़े की कमान मैगेलान नामक कमांडर के हाथ में थी |

राजू पिंकी को यह कहानी सुनाते सुनाते उस जहाज में पिंकी के संग सवार हो यहां वहां घूमने लगा |”मजा तो आ रहा है न पिंकी , देखो हमारे चारो ओर सुमुद्र ही सुमुद्र ,इसका पानी कैसे शोर करता हुआ हमारे जहाज से टकरा कर वापिस जा रहा है ,अहा चलो अब हम दूसरी तरफ से सुमुद्र को देखतें है ,अरे यहाँ तो बहुत सर्दी है”राजू ख़ुशी के मारे झूम रहा था | ,”हाँ भैया देखो न ,मै तो ठंड के मारे कांप रही हूँ भैया वापिस घर चलो न ,”पिंकी ठिठुरती हुई बोली | ”उस तरफ देखो ,वहां दिशासूचक लगा हुआ है, हमारा जहाज दक्षिण ध्रूव की तरफ बढ़ रहा है ,तभी तो इतनी सर्दी है यहाँ ,”राजू ने पिंकी का हाथ पकड़ लिया,”चलो हम नीचे रसोईघर में चलते है ,कुछ गर्मागर्म खाते है थोड़ी ठंड भी कम लगे गी ,”रसोईघर में पहुंचते ही राजू परेशान हो गया वहां मोटे मोटे चूहे घूम रहे थे और वहां खाने का सारा सामान खत्म हो चुका था यहाँ तक की भंडारघर भी खाली हो चुका था ,मैगेलान के सारे साथी भुखमरी के शिकार हो रहे थे ओर मैगेलान उन्हें हिम्मत देने की कोशिश कर रहा था ,राजू और पिंकी की आँखों में उन बेचारों की हालत देख कर आंसू आरहे थे ,मालूम नही और कितने दिनों तक यह भूखे रहेगे ,तभी किसी ने आ कर बताया कि कुछ दूरी पर छोटे छोटे टापू दिकाई दे रहें है । 

,मैगेलानने झट से नक्शा निकाला और यह पाया कि वह फिलिपिन्ज़ के द्वीप समूहों कि तरफ बढ़ रहे है यह समाचार सुनते ही पूरे जहाज में ख़ुशी की लहरें उठने लगी ,सब लोग जश्न मनाने लगे ,लेकिन वहां पहुंचते ही वहां के रहने वाले आदिवासियों ने उन सब को घेर लिया और उनके कई साथियों को मार गिराया |मरने वालो में उनका नेता मैगेलान भी शामिल था ,बचे खुचे लोग बड़ी मुश्किल से अपनी जान बचा कर ,अपने एक मात्र बचे हुए जहाज विक्टोरिया में बैठ ,एक बार फिर से सुमुद्र के सीने को चीर अपनी यात्रा पर निकल पड़े |लगभग तीन वर्ष बाद वह जहाज अपनी ऐतिहासिक यात्रा पूरी कर उसी बन्दरगाह पर पहुंचा जहां से वह यात्रा प्रारम्भ हुई थी | धरती हमारी गोल गोल ,यह कहते हुए राजू नींद से जाग गया और पिंकी उसे जोर जोर से हिला रही थी ,”भैया पूरी कहानी तो सुनाओ ,आगे क्या हुआ ? , मेरी प्यारी बहना पहली बार इस अमर यात्रा ने प्रमाणित कर दिखाया कि हमारी धरती गोल है |

रेखा जोशी 

No comments:

Post a Comment