Tuesday 26 January 2016

भाई बंधु थे अपने

याद है वो दिन
तपती दोपहरी के बाद
शाम को 
जब गली में अपनी
लगता था बच्चों का मेला
पड़ोस के सब बच्चे
मिल कर खेलते थे खेल नये
और हाथ में परात  लिये
लगता था मेला
साँझे  चुल्हे  पर 
भीनी भीनी पकती 
वह तन्दूर की गर्मागर्म रोटियाँ 
याद कर खुशबू जिनकी
आ जाता मुहँ में पानी 
पड़ोसी नही थे वो
भाई बंधु थे अपने
सुख दुख  के साथी 
हाथ बँटाते बिटिया की शादी में
आँसू  बहाते उसकी विदाई पे
जाने कहाँ गये वो दिन
जब पड़ोसी ही
इक दूजे के काम आते

रेखा जोशी 

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