Sunday 22 November 2015

तैरते बादल नील गगन पे

तैरते 
बादल नील गगन पे  
रूप 
अपना भिन्न भिन्न 
आकृतियों में
बदलते 
हवा संग 
उड़ता जाये 
पागल मनवा मेरा 
सपनो 
को संजोये  
उभरती
आकृतियों में 
पिघल गई आकृतियाँ 
बादलो की 
बूँद बूँद बरसती 
धरा पे 
सपने मेरे घुल गये 
मोती से 
अश्को में झड़ने लगे
 नैनो से 
बरसती जलधारा में 

रेखा जोशी 

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