Saturday 1 August 2015

क्षणिकाएँ


संग  मेरे
चलती रही मेरी अर्धांगिनी
निभाती रही सात वचन
साथ मेरा सदा
 निभाती रही वह रात दिन
हूँ खुशनसीब
संवर गई ज़िंदगी मेरी
पा कर हमसफ़र
हसीन
…………
चाहते इच्छाएँ
बरसों  से जिन्हे
था दबा रखा मैने
न जाने क्यों
मचल मचल कर सीने में
पूरा होना
अब चाह रही
जब से देखा
तुमको
.......... ……
हाथों से
फिसल रही
लम्हा लम्हा
रेत की तरह
ज़िंदगी हमारी
दो दिन के जीवन में
बाँट लो खुशियाँ
सबके संग
लौट कर न आएंगे
फिरसे
यह पल

रेखा जोशी


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