Sunday 2 August 2015

क्षणिकाएँ [उम्मीद पर ]

टकटकी बांधे 
निहार रहे शून्य में
कुछ अर्द्धनग्न 
मैले कुचैले कपड़ों में
लिपटे हुए बच्चे 
कभी तो खिलें गे
उम्मीदों के कमल
हँसेगे तब वह भी
सुन कर लोरियाँ
माँ की
ख्वाबो के महल में
ढेर सारी ख्वाहिशें लिये
मन में
सो गये उम्मीद की इक
आस लिए
.......... 
चलती नही 
ज़िंदगी 
तकिये पर बिखरे 
ख्वाबों से 
मिलते है शूल भी 
फूलों के संग 
पर सँजोये आस 
फूलों की 
टिकी है ज़िंदगी 
उम्मीद के संग 
.......... 
जला ले दीप 
आस का 
हृदय में अपने 
मत हो निराश 
जीवन में 
कट जायेगे 
दुःख भरे पल 
उम्मीद के सहारे 
महकाता चल 
जीवन अपना 

रेखा जोशी

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