Tuesday 23 June 2015

प्रेम की गलियों में

प्रेम का
दीपक जलाये
वफ़ा की गलियों में
हम गुज़रते रहे
सजाये
सतरंगी सपने
अपने नयनों में
तुम संग
दिल ओ जान से
प्रेम की गलियों में
हम गुज़रते रहे
बेखबर दुनिया से
हाथो में थामे हाथ
तुम्हारा मदहोश से
वफ़ा की राह पे
हम गुज़रते रहे
अचानक लौ
प्रेम के दीपक की
थरथराने लगी
चलने लगी जब
फ़रेब की तेज़ आँधी
लाख बचाया
बुझने से
दीपक को मैने
पर तहस नहस
हो गई वह
प्रेम की गलिया
जहाँ पर कभी
हम गुज़रते रहे
खा कर धोखा भटक रहे
तन्हा हम
हाथों में ले कर
वही दीपक
उन्ही गलियों में
जहाँ तुम संग
हम गुज़रते रहे

रेखा जोशी

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