Tuesday 6 January 2015

आनंद ही आनंद

जीवन में
आनंद  है  कहाँ
ढूँढता उसे फिर रहा

न हो  पाया भेद कभी
पाप और पुण्य में
अभिशप्त जीवन है कहीं
वरदान कोई पा रहा

कोई रोता जग में
खुशियाँ कोई मना रहा
पूर्णता की चाह में
हर कोई यहाँ
अपूर्ण ही रहा

झाँका जो भीतर
मन में अपने
शांत न उसे कर पाया
भटकता रहा यहाँ वहाँ
 उम्र भर  रहा तड़पता
पाया न कभी चैन
किसी ने यहाँ

मिलेगा
आनंद तुम्हे
अंतस में अपने
पाओगे तुम
हृदय में अपने
शांतचित से
करके बंद पलके
आनंद ही आनंद

रेखा जोशी

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