Monday 3 November 2014

हूँ चाहती साकार करना सपने अपने

हूँ चाहती
साकार करना
सपने अपने
दूर है जो
बहुत बहुत मुझसे
खड़ी किनारे पर
सागर के
चुन रही कुछ सीपियाँ
टूटी फूटी
कैसे करूँ मंथन
कल्पना के सागर का
कैसे ढूँढू
अमूल्य निधि
हो  सके
फिर
स्वप्न मेरे परिष्कृत
कर रही प्रयास
निरंतर
हूँ चाहती
साकार करना
सपने अपने
दूर है जो
बहुत बहुत मुझसे

रेखा जोशी

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