Wednesday 18 June 2014

रचयिता हो तुम मेरे

हाथों में हूँ
तुम्हारे
कच्ची माटी सी
ढाल दो मुझे
जैसा तुम चाहों
दे दो आकार
संवार दो मुझे 
हाथों से अपने
रच दो सुन्दर सा
रूप मेरा
खिला खिला सा
देख जिसे
गर्वित हो तुम
अपने अनुपम सृजन पर
और मै रचना
तुम्हारी
झूमने लगूँ थिरकने लगूँ
हर ताल पर
तुम्हारी
नाचूँ गी वैसे
नचाओगे तुम जैसे
रचयिता  हो
तुम मेरे

रेखा जोशी









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