Tuesday 4 February 2014

जाने अब कहाँ नज़ारे चले गए

जाने  अब  कहाँ  नज़ारे  चले  गए
जीने   के   सभी   सहारे  चले  गए

दिन तो ढल चूका औ चाँद भी  नही
जाने  सब  कहाँ  सितारे  चले  गए

उठ के जा  चुके वे तो  कभी  के  थे
जाने  क्यूँ   हमीं   पुकारे  चले  गए

शायद  वो अभी  लहरेँ  हो मचलती
जिन को छोड़ हम किनारे चले गए

महेन्द्र जोशी 

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