Saturday 22 February 2014

निकल पड़ो ज़िंदगी की लम्बी उड़ान भरने

दुःख
होता है
देख तुम्हे
कैद
दीवारों में
जो बना
रखी
खुद तुमने
अपने ही
हाथों
खुद को
कैद
कर लिया
क्यों
पिंजरे में
मुहँ छिपाये
पँख लपेटे
कब तक
बुनते
रहो गे
जाल
अपने
इर्द गिर्द
तोड़ दो
अब
बंधन सब
भर लो
उड़ान
फैला कर
अपने पँख
उन्मुक्त
ऊपर दूर
आकाश में
विश्वास
है तुम्हे
खुद पर
जानते हो तुम
मंज़िल तुम्हारी
उड़ान  है
तुम्हे
उड़ना है
उठो
फैलाओं
अपने पँख
और
निकल पड़ो
फिर से
ज़िंदगी की
इक
लम्बी उड़ान
भरने

रेखा जोशी








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