Friday 8 November 2013

श्रृंगार रस [दो मुक्तक ]

श्रृंगार रस [दो मुक्तक ]

सुहानी चांदनी से भीगता यह बदन
हसीन ख्वाबों के पंखों तले मेरा मन
उड़ने लगी चाहतें ले के संग कई रंग
नाचे मन मयूरा  बांवरा ये तन मन
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जन्म जन्म के साथी हो तुम मेरे 
उड़  रही  हूँ  संग  हवाओं  के  तेरे 
ले  लो अब आगोश में  मुझे अपने 
ओ मेरे हमसफ़र ओ हमदम  मेरे 

रेखा जोशी 

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